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Smita Patil Mahajan

Abstract

4.5  

Smita Patil Mahajan

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जाड़ों का मौसम

जाड़ों का मौसम

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545



जाड़ों का मौसम है आया 

छोटे दिन और लंबी रातें लाया

काँपती ठिठुरती ठंड में 

काम से सबने जी चुराया 


खुली संदूके , निकली रज़ाईयां 

शॉल मफ़लर गले लगाया 

दुबके बैठे रज़ाई लपेटे 

अदरक की चाय ने माहौल बनाया 


बह उठी सर्द हवाएँ 

हिम शिखरों पर तुहिन सजाई

सहेज कर रखने अपनी गरमाहट

धरती को कोहरे की चादर ओढ़ाई 


देख दूर से सारा माजरा 

सूरज का भी मन ललचाया 

सब सोते हैं मैं क्यों जागूँ 

कह सूरज ने मुँह फुलाया!!


साल भर मैं रोज़ सवेरे 

उठता हूँ सुबह सबसे पहले 

थक गया हूँ घूमते घूमते 

जी करता है थोड़ा आराम कर लें ! 


रूठा सूरज देख माँ ने 

प्यार से उसे गले लगाया 

सृष्टि का कालचक्र चलता है तुझसे

कह माँ ने उसे समझाया 


माँ की बात पर विचार करके

सूरज ने एक प्लान बनाया 

सुबह देर घर से निकल वह

शाम को जल्दी वापस आया ।


और जाड़ों में छोटे दिन और

लंबी रातें लाया ... 


              


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