इतनी श्रद्धा कैसे उपजी
इतनी श्रद्धा कैसे उपजी
जीते जी यदि रखते होते
माता-पिता में श्रद्धा तुम।
तो न दिखाई देते होते,
जगह-जगह पर वृद्धाश्रम।
बाद मृत्यु के जागी आस्था,
कर रहे तर्पण कर रहे श्राद्ध।
जिन्दा जिनकी सुध न ली कभी,
अब क्यों आई उनकी याद ?
डरते हो क्या यही सोच कर,
इक दिन अपने साथ यही होगा।
जैसी करनी वैसी भरनी है भाई,
जैसा किया फल भी वही भोगा।
करें न झूठा आडंबर व दिखावा
यही है मेरा इक छोटा अनुरोध।
जो करते स्नेह व सम्मान उनका
उन्हें ही है श्राद्ध का कर्त्तव्य बोध।