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Meena Mallavarapu

Abstract

4  

Meena Mallavarapu

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इंतज़ार

इंतज़ार

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इस इंतज़ार का क्या कहना 

सामने खड़ी है ख़ुशी ,

और मैं बैठी उसकी ताक में!


मुस्करा रही है , मंद मंद-

है आंखों में उसके भी

इंतज़ार मेरे आव्हान का


है उसकी आंखों में अजब

एक याचना दिखती

पहचानो मुझे ,हूं तुम्हारी! 


हो बेचैन,अधीर मेरे लिए 

फिर तिरस्कार कैसा

ढूंढ रहे हो कहां-कहां मुझे


क्या अपेक्षा है यह तुम्हारी 

कि आऊंगी मैं

रथ पर सवार,रत्नों से सजी


अनुपम सौंदर्य,सर्वगुण संपन्न 

चंचल,चपल कामिनी

मधुराति मधुर वाणी लिए


धरा की गरिमा , नदिया का उत्साह

आसमान के तारों की चमक

महीधर की ऊंचाई,सागर की गहराई 


क्षमाप्रार्थी हूं मैं,पूरी न कर पाऊंगी 

अपेक्षा यह तुम्हारी 

जैसी हूं वैसी हूं सामने तुम्हारे!


स्वीकार करो या करो अस्वीकार 

है विकल्प तुम्हारा -

बेकल हूं ,जोह रही हूं बाट तुम्हारी 


यह धरा यह आसमान,यह पहाड़

यह बहती नदियां 

यह ऊंचाइयां ,यह गहन गहराइयां


यह गरिमा यह सौन्दर्य, हैं समाहित 

तुझ में ,देख ज़रा

सामने तेरे,आसपास तेरे -चारों ओर 


प्रियजनों का साथ,प्रेम भरा आलिंगन 

बच्चों की किलकारी ,

दिलों में बसते स्नेह और अनुराग की


है याचना मेरी,है संदेश यही

चेतावनी यही

इंतज़ार न करो अब मेरा


हूं खड़ी तुम्हारे आगे,ले कर

खुशियों का थाल

कर लो ख़ुशी ख़ुशी स्वीकार! 



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