इंसानी भेड़िये
इंसानी भेड़िये
एक था मोहल्ला जिसके थे रास्ते चार
जहा लगता था एक बड़ा बाजार
जहा रहती थी एक लड़की हसीन
सपने पाला करती थी बिलकुल रंगीन,
माँ बाप की दुलारी और भाइयो की प्यारी
पढ़ाई करके डॉक्टर बनने की कर रही तैयारी,
उसे मोहल्ला मे रहते थे कुछ लड़के आवारा
काम काज करना जिनको नहीं था गवारा,
आते जाते लड़कियों को ताका करते
इधर उधर की बातें करके गप हाका करते,
इस लड़की को देखा तो इसे भी ताकने लगे
आते जातें इसके रास्ते झाकने लगे,
लड़की यह सब किसी न कहती
कॉलेज जाना बंद न हो जाये इसलिए चुपचाप सहती
पर फिर आखिर मे लड़की मे थोड़ी हिम्मत आई
उसने थाने उन लड़को शिकायत लिखाई
शिकायत पर लड़को कुछ दिनों के लिए हो गई जेल
पर किसी मंत्री की सिफारिश उनको मिल गई बेल
अब लड़को का गुस्सा और बढ़ गया
इतनी हिम्मत उस लड़की की यह सोच कर
उनका पारा चढ़ गया
इसका सबक उसको सिखाना होगा
तेजाब से उसे जलाना होगा
हाथ मे तेज़ाब की बोतल लेकर वो चले
उसे मोहल्ले के बाजार मे जहा उस लड़की से मिले
लड़की को देखते ही उसके ऊपर बोतल उछाल दी
पुरी की पुरी बोतल तेज़ाब की उस लड़की के ऊपर डाल दी
तेज़ाब ने लड़की नहीं उसके सपनो को भी जला दिया
उसकी उम्मीद और आकांक्षा को भी गला दिया
लड़की वही जल कर मर गई
तमाशाबीन भीड़ तमाशा देख कर घर गई
मोहल्ला और बाजार अब भी वही था
पर उस लड़की का परिवार अब वहां नही था
वो कहीं दूर निकल गए
जहां ऐसे इंसानी भेड़िये न हो वहां चले गए।