इंसान हूं
इंसान हूं
इंसान हूँ, इंसान ही रहना चाहती हूँ।
मुझे अमरत्व की चाह नहीं है।
मुझे ईश्वरत्व की चाह नहीं है।
मुझे स्वर्ग की चाह नहीं है।
मुझे जीवन को स्वर्ग बनाना है।
इंसान हूँ, इंसान ही रहना चाहती हूँ।
दुःख-सुख जीवन के दो पहलू हैं।
स्वीकार इस सत्य को करती हूँ।
सामना, हर अनजाने भय का करती हूँ।
विजय पाकर भय पर, आगे बढ़ती हूँ।
कभी चूक जाऊँ, तो हिम्मत सहेजती हूँ।
इंसान हूँ, इंसान ही रहना चाहती हूँ।
धैर्य, साहस, प्यार, नम्रता के गुण निभाऊँ,
कोशिश हमेशा यही करती हूँ।
काम आऊँ किसी के, जीवन का उद्देश्य मानती हूँ।
कुछ दूँ समाज को, प्रयत्न सदैव ये करती हूँ।
इंसान हूँ, गलतियाँ सुधारकर आगे बढ़ जाती हूँ ।
इंसान हूँ, इंसान ही रहना चाहती हूँ।
भेदकर मुश्किलों को जीत जाती हूँ।
हर बाधाओं से भिड़ जाती हूँ।
कर्तव्यों का पालन करती हूँ ।
रूकावटें रोकती नहीं, हौसला बढ़ाती है।
इंसानियत निभाने का यत्न करती हूँ।
इंसान हूँ, इंसान ही रहना चाहती हूँ।
किसी क्षण कमजोर होकर क्रोध, ईर्ष्या में बह जाती हूँ ।
भटकन छोड़कर सही मार्ग पर चल देती हूँ।
जो जैसा है, उसे वैसा ही अपनाती हूँ।
टेढ़े मेढ़े रास्ते पर कभी फिसल जाती हूँ ।
संभलकर, ऊँच - नीच समझकर आगे बढ़ती हूँ ।
इंसान हूँ, इंसान ही रहना चाहती हूँ।