इमारतें
इमारतें
सुन्दर इमरातें देखकर
ख़ुशी ख़ुशी से मन
रहता हैँ इसी अवसर पर
दुनिया में भी ईमारातें
कबूतर और चिड़िया
देखते हैं जो मन तो
कहता है कि
ये दुनिया कितनी सुंदर है
लेकिन क्यों इस जग में
रहने व्यक्ति इतनी स्वार्थ
और कुटिल थे,
कितनी भेद कब बदलेंगे
बदलना ही मनुष्य की आदत है
ये स्वीकार करना है।
आज बदलने से सिर्फ
आदमी दौड़ते है
ना प्रेम था, ना त्याग
भावनाओ जो है
वो भी बदलगई,
कहाँ है हिमालय का सुन्दर पवन
कहाँ है माँ गंगा की
कल कल ध्वनियाँ
हाँ कहाँ है ओ फूलों
की बगीचाँएँ
प्रकृति का जो
संपत्ति है
उसका सजाना है
कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी
तक हम भारतीय हैं
सुन्दर वानों का, फूल
खूब झरना की
दूध जैसे पानी
गंगा, गोदावरी
यमुना, कावेरी का
संगम हैं हम
जै भारत।