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RAJNI SHARMA

Abstract

4  

RAJNI SHARMA

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इल्तिज़ा

इल्तिज़ा

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इतनी-सी इल्तिज़ा है प्रिय...,

बेवजह ही बात को न बढ़ाया करो,

ग़र हो खता हमसे तो मेरे यारा,            

बेतकल्लुफ़ ही मान जाया करो।

इतनी सी इल्तिज़ा हे साहेब ,

बेवजह ही बात को न बढ़ाया करो।

                 

लाल- पीले होकर मकां को,                  

नफ़रत का अखाड़ा न बनाया करो।

इतनी-सी इल्तिज़ा है जनाबे आली,

बेवज़ह बात को न बढ़ाया करो।

निवाले से क्यों होते हो खफा,       

इसके लिए शुक्रिया अदा करो।

इतनी-सी इल्तिज़ा हे मेरी ,

मुहब्बत में मान जाया करो ।


अपनों को अपनापन दिखाया करो,

मुहब्बत को मुहब्बत से ही अदा करो।

इतनी-सी इल्तिज़ा हे मेरी प्रिये ,

बेवजह बात को न बढ़ाया करो।


ओ प्रिय, मुस्कुराहट को ही ,

मुखड़े का नूर बनाया करो।

इतनी-सी इल्तिज़ा है मेरी ,

बेवज़ह बात को न बढ़ाया करो,

चाहत है, मेरे पास आया करो ।


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