इज़हार-ए-इश्क
इज़हार-ए-इश्क
इश्क़ का इज़हार करना जानता हूँ,
शायर हूँ प्यार करना जानता हूँ।
तुम उल्फत का मोइन बरसा कर कर रही हो तोबा,
में मोहब्बत में बिना थके मल्हार करना जानता हूँ।
आशिक़ी में उम्मीद नही वफ़ा के बदले वफ़ा की,
मेरी बेशर्त है सदा मोहब्बत;
तेरी खुदगर्ज़ी स्वीकार करना जानता हूँ।
निगाहें ख़ंजर नहीं तुम्हारी तरह की कोई घायल हो,
में शब्द से शिकार करना जानता हूँ।
इश्क़ में कुछ हाँसिल नहीं, त्याग की ये आग है,
कंहा जूठी दिल्लगी का व्यापार करना जानता हूँ?
मैं ख़ामोश हूँ "आवाज़" लब्ज़ तुम्हारे बहोत चुभते है,
सच बोलने बैठूं तो सब ह्रदय के आरपार करना जानता हूँ।
चल जूठी कहती है प्रेम में अंधी है वो,
बंध आंख कर उसका दीदार करना जानता हूँ।
एक मशहूर लेखक कह चले इश्क़ आज़ादी देता है,
कैदखाने को भी कसम से गुलज़ार करना जानता हूँ।
बाकी मालूम नही निशानी पहली नज़र के प्यार की;
तुम रूबरू मिलो तो धड़कनो को तैयार करना जानता हूँ।
मैंने कभी वास्ते दिल के दिल मिले नही चाहा,
मगर तुम्हारी नफरतों को बेकार करना जानता हूँ।