हवाओं की सदाओ
हवाओं की सदाओ
हवाओं की सदाओ
हवाओं की सदाओ को झोकों में सुनाता है
कोई धीमे से कर्ण छिद्र में कोई गाता है .
किसी शून्य से स्वर सा गूंजता आता कौन
अपनी और खींचता कुछ सुझाता जाता कौन.
मुड़ेर पर बैठा पंछी अपनी भाषा में कुछ कहतें
कभी पास आ सामने बैठ चुगते से बुलाता है .
कबूतरों का झुण्ड छत पर बैठ गुटरु गु सा सुनाना
कभी पंखो को फडफड़ा आवाज़ हवा दे जाता है .
हवा तेरे अंदर कितना अनुमाद है हर पाता नाद
जिससे ये पोषण धरा पर सृष्टि आवाद आता हस्वरचित