हवा संग चलता गया...
हवा संग चलता गया...
हवा संग चलता चला गया
बहाव संग बहता चला गया,
रुकना कहीं मुनासिब ना था
साँसों को ले साथ चलता गया,
गुजर रही उम्र छाँव कमाने में
परिंदों के लिए दरख़्त बनता गया,
बैठ जाने से कहाँ मिलती मंज़िल
उम्र-ए-रफ्ता आँख मलता गया,
उसे फिज़ूल लगे मेरा हुनर जीने का
क्यों उसका सलीका बदलता गया,
जाने जीवन में कितने इम्तिहान हैं
हर पग ठोकरों से सीखता गया,
वो मेरी दीवानगी हमारी ना हुई,
मैं ताउम्र उसका इंतज़ार करता गया,
उसके जाने का कहाँ ग़म "उड़ता "
मेरा तन्हाई से दामन जुड़ता गया,
बदस्तूर हवा संग चलता गया
संवेदना के बहाव में बहता गया।
