हवा चली है कैसी
हवा चली है कैसी
हर पथ पे सन्नाटा पसरा,
हवा चली है कैसी।
नर-नारी घर में कैद हुए,
पड़ी दृष्टि ये कैसी।
कैसी विपदा आन पड़ी है,
अपने भी दूर हुए।
हर और मची है त्राहि-त्राहि,
सपने भी चूर हुए।
अपने-अपने घरों में बंद,
ये लाचारी जैसी।
हर पथ पे सन्नाटा पसरा,
हवा चली है कैसी।
नर-नारी घर में कैद हुए,
पड़ी दृष्टि ये कैसी।
सूनी राहें सूनी गलियाँ,
सुनी नहीं किलकारी।
फूलों सी महकती थी कभी,
सूनी है फुलवारी।
कलरव करते पंछी सोचें,
चुप-चुप धरती कैसी।
हर पथ पे सन्नाटा पसरा,
हवा चली है कैसी।
नर-नारी घर में कैद हुए,
पड़ी दृष्टि ये कैसी।