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sp_world 09

Romance

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....हुआ क्या है ?

....हुआ क्या है ?

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ना बात करने का तरीका था,

ना सुनने का....

ना कहीं जाने की ख्वाहिश थी,

ना लोट के आने की....

ना दिन का इंतजार था,

ना रात का....

पर... ना जाने अब हुआ क्या है....?


जहां बात करने का तरीका ना था....

वहाँ भी अब हाँ में हाँ मिलाने लगे।


जहां सुनने से दिमाग के कील सरके हुए थे....

वही भी अब सुरों के तार जुड़ने लगे।


जहां ख्वाहिश नहीं थी कहीं जाने की....

वही अभिलाषा हो रही अब नये अरमानों की।


जहां ना आस थी लोटकर आने की....

वही तमन्ना हो रही अब घड़ी के इंतजार की।


जहां ना किया था कभी इंतजार रात का....

वही चाहत हो रही अब चांद-तारो सी मुस्कान की।


जहां ना होता था कभी दिन में बेचैन....

वही तड़प हो रही दिल में अब आसमान के बाहो की।


पर...ना जाने अब हुआ क्या है....?

जो लग रहा था पहले पूरा ....

अब अधूरा सा क्यूँ लग रहा है।

ना जाने अब हुआ क्या है....?



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