अपने कोन, कोन पराए...अपना पन.
अपने कोन, कोन पराए...अपना पन.
अपने कौन,
कौन पराए ,
इसी में अब तक उलझे हो,
सब कुछ होते हुए भी
मन मे ज्वाला लेके बैठे हो,
दिखे थे बोहत बाहर से ज्ञानी ,
अंदर से बडे अज्ञानी हो ,
किये थे एक दिन तुमसे दिल की बात,
तब अपनो मे ओर परायो मे समझाइ
तुमने क्या होती है बात....
केहते हो अपने आखिर अपने होते है
पराये होते है मतलबी यार...
पर जब संकट आ जाए तुमपर
तो वही पराए उथल पुथल कर देते
तुम्हारे लिए सारा संसार...
तो सून ये मेरे अपने खुदगर्ज....
वो पराया होकर भी अपना समज लेते है
मुश्किल में अपने तो बहाना बनाकर साथ छोड़ देते है।
वही पराये सहारा देकर परेशानियां चुटकियो मे हल कर देते है...
क्योंकि यार...पराये नही होते कभी तारीफो के मोहताज
दिखाते नही क्या होते हैं उनके जज़्बात...
उनको भी कभी चुभती होंगी तुम्हारी बात
खुद को ही कोस कोस के...
तुम्हारी वजह से बर्बाद होती होंगी उनकी कभी रात...
पर...बेसहारा को सहारा देना...
चाहे ना हो उससे कोई लेना और देना...
उनका यही स्वभाव तो सराहनीय है
इसीलिए अपनो से भी ज्यादा...
वही तेरे लिए आदरणीय है...
तो...
कोन अपने,
कोन पराए,
इसी में ना तुम उलझो ...
जिस राह पर जो मिल जाए
उसी को तुम अपना समझो...
