*_हत्यारे_* "
*_हत्यारे_* "
मैं जन्मी लड़की बनकर,
इसमें मेरा क्या दोष,
जन्म से ही लाखों अपेक्षाएं सही,
क्या रह गई कमी,
यही खोजते उड़ गए मेरे होश।।
जब सपना देखा आसमान का,
बरसाया लोगों ने रोष,
मेरे सपनों के हत्यारे
कितनी तुच्छ इनकी सोच।।
लाखों पुरस्कार मिले मुझे,
अपनों से मिलता,
हर बार कोई नया दोष,
मेरे तन मन के हत्यारे_ ,
दुनिया के आगे बनते बड़े न्यारे।।
बनावटी मुस्कुराहट!
बनाए रखो, मुझ पर,
आते रहते यह फोर्स,
लाख सहा कुंठाएं,
फिर भी सब की खुशी में,
बनाए रखें अपने जोश।।
