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Ravindra Lalas

Abstract

4.6  

Ravindra Lalas

Abstract

हर लम्हे में, हर नग्मे में।

हर लम्हे में, हर नग्मे में।

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285


वो दिल का सुकुन, वो सर पे जुनून,

हर लम्हे में, हर नग्मे में।

कब हुआ शुरू है किस को खबर,

हर लम्हे में, हर नग्मे में।

जब लगता नही वो होगा कम,

हर लम्हे में, हर नग्मे में।

सोते जागे, जगते सोए,

हर लम्हे में, हर नग्मे में।

जब भी देखो खोए-खोए,

हर लम्हे में, हर नग्मे में।

खुद अपना ठिकाना याद नहीं,

हर लम्हे में, हर नग्मे में।

पर ना भूले एक बात वही,

हर लम्हे में, हर नग्मे में।

एक फिक्र वही, एक जिक्र वही,

हर लम्हे में, हर नग्मे में।

एक साथ वही, एक संग वही,

हर लम्हे में, हर नग्मे में।

बस बात वही, बस रंग वही,

हर लम्हे में, हर नग्मे में।

हो कोई बहाना, बस एक फसाना,

हर लम्हे में, हर नग्मे में।

फिर बिगङी बातों का बन जाना,

हर लम्हे में, हर नग्मे में।

मुश्किल की वज़ह कुछ और ही हो,

हर लम्हे में, हर नग्मे में।

पर एक सबब ही मुस्काना,

हर लम्हे में, हर नग्मे

वो दिल का सुकुन, वो सर पे जुनून,

हर लम्हे में, हर नग्मे में।


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