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मिली साहा

Abstract

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मिली साहा

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हर कोई एक जैसा नहीं होता

हर कोई एक जैसा नहीं होता

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हर कोई एक जैसा नहीं होता,

सबकी अलग पहचान है,

अपनी-अपनी एक अलग दुनिया, 

एक अलग मुकाम है।


शक्लें एक सी हो सकती,

पर गुण, व्यवहार न समान होता,

कोई मन से दुर्बल, कोई तन से दुर्बल,

तो कोई तीक्ष्ण बुद्धि बलवान होता।


किसी की मीठी वाणी मन को छू ले,

कोई केवल कड़वे वचन ही बोलता,

चुटकी में कोई कर देता हर कार्य,

तो कोई आलस की चादर ओढ़ सोता रहता।


जिससे संभव जो कार्य,

केवल वही उसको कर पाता,

जहांँ सुई से काम हो जाए,

वहांँ तलवार निकालकर कुछ नहीं मिलता।


सबकी अपनी अपनी शक्ति, 

अपनी-अपनी हैं कमज़ोरियांँ,

सब अपनी जगह सही हैं गुण, दोषों के साथ,

कोई किसी की जगह नहीं ले सकता।


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