Vijayanand Singh

Abstract Others

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Vijayanand Singh

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होली

होली

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नित-विदीर्ण रिश्तों की कसक में,

जुड़ने का एहसास है होली।

मन हो रंगा जब प्रेम के रंग तो,

जीवन का हर पल है होली।

नैनों में जब स्वप्न पलें तो,

हास-सुवास-प्रभास है होली।


जा बैठे परदेस पिया जब,

प्रेम-प्रतीति-अनुराग है होली।

पी से हुई मिलने को बेकल,

यौवन का अभिसार है होली।

पिया-मिलन की आस जगी तो,

रंगों की बरसात है होली।

क्यों न लगे मन फागुन-फागुन,

सजनी जब साजन की हो - ली।



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