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मुकेश सिंघानिया

Abstract

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मुकेश सिंघानिया

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होली में

होली में

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बताओ कैसे मनाएं तिहार होली में

दिखे उदास से चेहरे हजार होली में


है मुंतजिर कहीं पे आंखें दो सिसकती सी 

कहीं उतरने लगा है श्रृंगार होली में


सुना जो सरहदों पे फिर तनाव जारी है

तो मां ने सदके उतारे हजार होली में


महक रहे हैं कहीं अंग अंग खुश्बू से

तरस रही हैं कहीं जीस्त यार होली में 


कई दिनों से वहां पर धुंआ नही दिखता

गरीब घर की है खुशियाँ उधार होली में


खुदा ने नेमते बख्शी है गर तुम्हे बंदे

यतीम जिंदगी को तू संवार होली में


मिले हुए भी कई अपनों से हुआ अरसा

बहाने काम न आए तिहार होली में


तमाम रुठे हुए अपनों को मना ले तू

अगर तू रिश्तों में चाहे निखार होली में।


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