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मुकेश सिंघानिया

Others

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मुकेश सिंघानिया

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कहर है बरपा हुआ दिलों में

कहर है बरपा हुआ दिलों में

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कहर है बरपा हुआ दिलों में

उदासियां पसरी है घरों में/1/


न रोशनी की उम्मीद कोई

छिपा है सूरज भी बादलों में/2/


हो चाहे कितना भी वक़्त मुश्किल

कमी नही कोई हौसलों में/3/


कभी गुजर के जरा तो देखो

इबादतों की भी बस्तियों में/4/


उठे दुआओं में हाथ हजारों

तलब सभी की थी रोटियों में/5/


सियासतों का अहम है किरदार 

मेरे वतन की तबाहियों में/6/


है कुर्सियां खूब मुस्कुराती

लगे अगर आग बस्तियों में/7/


न रखते अब कोई दाना पानी

न आते पंछी ही अब छतों में।/8/


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