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मुकेश सिंघानिया

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मुकेश सिंघानिया

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खयालों का जखीरा

खयालों का जखीरा

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खयालों का जखीरा  हूँ  मगर जोकर नहीं हूँ मैं

मैं रखता ताप हूँ लेकिन कोई अख्तर नहीं हूँ मैं/1/


कलम के जोर पर दुनिया जगाने वास्ते निकला

बड़ा  ही  चोट करता हूँ यूँ तो पत्थर नहीं हूँ मैं/2/


समेटे हूँ मैं  भीतर खुद के  तूफानी बवंडर इक 

समंदर हूँ मैं गहरा  आब  चुल्लू भर  नहीं हूँ मैं/3/


बदलना चाहता हूँ मैं जमाने को कलम के दम

खटकता हूँ  मैं लोगों को भले खंजर नहीं हूँ मैं/4/


बड़ा लड़का हूँ मैं घर का बड़ी उम्मीद है मुझसे

अभी भी  आस हूँ मैं  खंडहर जर्जर नहीं हूँ मैं/5/


मिले जब ओहदों पर शोहदे अपमान है पद का

गलत कहता गलत को मौन रहता पर नहीं हूँ मैं/6/


लिखूँ अब और क्या कुछ भी समझ आता नहीं मेरे 

बड़ी  जद्दोजहद है  चैन से  पल भर  नहीं हूँ मैं/7/


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