बाबूजी
बाबूजी
तमन्ना आरजू उम्मीद थे रुतबा थे बाबूजी
मेरी हिम्मत मेरी ताकत मेरा जज्बा थे बाबूजी
मेरे साहस थे मेरे हौसला थे डर गुजारिश थे
मेरे रहबर मेरे प्रेरक मेरी दुनिया थे बाबूजी
सफलता की कहानी के रहे आधार वो हरदम
मेरी नाकामियों पर इक बड़ा परदा थे बाबूजी
बड़े बरगद के साये सा रहा सर पर सदा अहसास
निगहबानी का जीता-जागता किस्सा थे बाबूजी
वो इक बुनियाद थे मजबूत थामे थे समूचा घर
जरूरत के मुताबिक सबका ही हिस्सा थे बाबूजी
विरासत में मिली है हमको तो संस्कार की शिक्षा
सदाचारी विनय के पाठशाला सा थे बाबूजी
भले ही आज जूते मैं पहन लेता हूँ उनके पर
मेरे कद से अनुभव में बहुत ज्यादा थे बाबूजी
कभी कोई कमी महसूस न होने वो देते थे
हर इक ख्वाहिश की पूर्ति का बड़ा जरिया थे बाबूजी
फटी बनियान की हर छेद देती है गवाही ये
कि अपने वास्ते किस हद से लापरवा थे बाबूजी
कमाई ओढ़ रख्खी है मेरे दिन रात खर्चों ने
मगर इक संतुलित जीवन का अफसाना थे बाबूजी
झलकती है मेरे हर काम में गहरी छवि उनकी
मेरे किरदार में कुछ इस तरह चस्पा थे बाबूजी
कभी घर तो कभी बच्चों के खातिर रोज ही खुद का
किया सौदा सरे बाजार जब जिंदा थे बाबूजी।