हंसते-गाते जीवन बिताना चाहिए
हंसते-गाते जीवन बिताना चाहिए
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कहते हैं कि ये जिंदगी है चार दिन की,
हंसते-गाते और मुस्कुरा कर बिताना चाहिए।
रात-दिन दुखों से घबराकर आंसू बहाना नहीं चाहिए,
हंसकर और हंसाकर दिल बस खुश रहना चाहिए।
जब हो दुखी तो गोलगप्पे और चाट के ठेले पर जाना चाहिए,
साथ में अपने सखा और सखियों को भी ले जाना चाहिए।
पूरे साल में होते हैं 365 या 366 दिन,
हर दिन है समान तो सिर्फ पहले दिन ही क्यों धूमधाम से मनाना चाहिए।
जब भी मिले समय तो अपने बड़े-बुजुर्गों के पास जाना चाहिए,
फिर से उन लम्हों को याद करते हुए अपनी पुरानी यादों में खो जाना चाहिए।
हमारे दादा-दादी जी और नाना-नानी जी के पास है,
जो ज्ञान, अनुभव और कहानियों का भरपूर है बेशुमार खजाना।
अपने आने वाली पीढ़ियों को अगर है सही रास्ते पर चलाना,
कि उनको मिल जाए अनुभव और ज्ञान और भक्ति का ये अनमोल खजाना।
तो उनको जितना हो सके करता है ये 'शीतल' प्रार्थना,
बड़े-बुजुर्गों के पास जाना और याद करते-करते उनकी गोद में सो जाना।
हर दिन किसी की होती शादी और किसी का जन्मदिवस,
तो इन सभी का आनंद एक ही दिन क्यों मनाना चाहिए।
अगर सुख एक ही दिन तो दुखी रोज क्यों रहना चाहिए,
अपनी खुशी एक दिन मनाकर और बाकि दिन ग़म क्यों मनाना चाहिए।
अगर हुई है कुछ गलतियां और नादानियां,
उन्हें भूलकर नये दिन की शुरुआत करनी चाहिए।
अपने आप को और परिवार को रखना है अगर खुशहाल,
तो इन तकलीफों और दुख-दर्द से लड़ना नहीं तो जीना हो जाए ना बेहाल।