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मिली साहा

Abstract

4.5  

मिली साहा

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हमारी पहचान हैं पापा

हमारी पहचान हैं पापा

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हमारी नन्ही-नन्ही उंगलियों को पकड़कर चलना सिखाया,

संभाला लड़खड़ाते कदमों को जीने का सही मार्ग बताया,


घबराए नहीं कभी परिस्थितियों से सदा धैर्य से किया काम,

हमारे सुख के लिए जीवन भर दौड़े कभी ना किया विश्राम,


कितनी भी करते हम शैतानियां  हमेशा प्यार से समझाया,

कभी घोड़ा बन कर तो कभी कंधों पर बैठाकर हमें घुमाया,


कभी जताया नहीं पर समझ जाया करते दिल की हर बात,

जब कभी भी हमें उदास पाया प्यार से रखा है सर पर हाथ,


हिम्मत बढ़ाई है जब भी डगमगाया खुद पर हमारा विश्वास,

जीवन की हर उलझन में पाया है उनको हमेशा अपने पास,


वट वृक्ष समान हैं पापा जिनकी छांव में रहता पूरा परिवार,

उनकी फटकार में भी हमारे लिए छिपा हुआ रहता है प्यार,


हिम्मत है, ताकत है वो घर परिवार की उनसे है अनुशासन,

उनसे पहचान हमारी उनसे ही तो जुड़ा है हमारा ये जीवन,


ऊपर से दिखते हैं बड़े ही सख्त पर दिल मोम सा है कोमल, 

कड़वी बातें कह जाते ज़रूर पर उन बातों का बड़ा है मोल,


हमारे हर दुख को अपना दुख समझकर सुलझाते हैं पापा,

आए कोई मुसीबत तो हौसलों की दीवार बन जाते हैं पापा,


बेटा, बेटी, बहू और दामाद सबको देते हैं एक समान दुलार,

उनके आशीर्वाद की शीतल छांव में मुस्कुराए ये घर संसार।


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