हमारा सफ़र
हमारा सफ़र
कितने मोड़ दिखाती है ज़िन्दगी,
इंसान की ज़िन्दगी ही कुछ अजीब है
दूर किसी मंज़िल पर पहुंचने के लिए,
जैसे कोई गाड़ी या वाहन ही नहीं,
बस चलते चले जाना है
अपनी मंज़िल की तरफ उन राहों में,
हातिमताई की एक अनोखी दास्तान की तरह,
कितने ही मसले हैं सुलझाने को,
उम्र के हर छोटे बड़े मुकाम पर,
ज़िंदगी ने रखें हैं सावाल राहों पर,
कुछ मसले हमनें सूलझा लिए,
कुछ सुलझ गए उसकी रेहमत पर,
आख़िर मंज़िल तक पहुंचना तो है,
चाहे रास्ते सुकुनियत भरे हो ना हो,
फिर वो इंसान ही तो है,
जिसे दास्तानें सफ़र सुनाने की आदत है,
फिर वो इंसान ही तो है,
जिसे रोज़ाना कुछ नया करने की चाहत है,
बहुत खयाल रखा है खुदा ने,
मशगुल रखा है हमे ज़िन्दगी की गुमराहों में।