हमारा रिश्ता
हमारा रिश्ता
न जाने तुम मुझमें क्या देखते हो
यक़ीनन जो नहीं हूँ मैं
वो देखते हो,
अक्सर यही
शिकायत करते हो
तुम भी तो मुझसे I
जानते हो,
जब हम अपनी- अपनी शिकायतों का
ज़खीरा लेकर आमने सामने होते हैं
वारों - पलटवारों में
मालूम है
कितना ज़ख्मी हो जाता है 'रिश्ता हमारा',
कितना तड़पता है, छटपटाता है
जिन्दा रहने के लिए।
कभी कभी मुझसे इसकी ये हालत
देखी नहीं जाती
सुनो,
मुझे डर है कि
कहीं ये मर न जाए।