हिंदी मेरी मातृभाषा
हिंदी मेरी मातृभाषा
जैसे सरकती प्रातः तुहिन पत्र पर,
मेरी हिंदी भी ऐसे सरकती, पुलकित होकर।
अमल गन्ध वह बनकर निकले हिंदी,
तरस जाए नयन, देखने वाले को, वो भी देखें हर्ष होकर।
हिन्दी साहित्य की जलज के स्नेह है।
भारतेंदु के लेखनी से निकली शब्द गुण है।
परिमल जलज, कुवलय पुष्प है हिन्दी,
साहित्य वट के रसाल गुण है।
हे! सुजान स्वयं अवनि पर, बिखरे हुए कर दो,
ऐसे भाषा को जो मधुर बनकर आई।
शीतल मिले ओठ पर, पहला अरविंद खिलय,
जो हरिश्चन्द्र के ह्रदय से निकली वाणी, वो हिन्दी बनकर आई।