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हिन्दी कविता- जाड़े की रात |

हिन्दी कविता- जाड़े की रात |

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बिगत बरखा देखो जाड़े की रात आई |

गरीबो दुख अमीरों खुशी बारात आई |

कोई ढूँढता कड़कड़ाती ठंढ मे जगह |

बहाना ढूँढता कोई जाम टकराने वजह |

किसी खुशी किसी मुसीबत आज आई |

उसके हिस्से फटी चादर पाँव बहराई |

ओढ़ लोगे ठंढ तुम गरम मोटी रज़ाई |

ठंढी लहर बर्फ की चादर साथ लाई |

प्रेमियों प्यास बुझाने है मिलन कि रात |

धड़कन दिलो सुनाने संग बिताने की रात |

 पूनम की चाँदनी चाँद है साथ लाई |

पंख पसार पखेरू चूजे अपने छिपा रहे |

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: rgb(29, 33, 41);">बाहर की नरमी बच्चों अपने बचा रहे |

कंपकपाते तरु गर्म है आस लाई |

पड़े है सोये बेखबर फुटपाथ मे जो

|समेटती जिंदगी गिनते तारे रात मे जो |

ठंढी हल्की फुहार है भय मौत आई |

खंभे की टिमटिमाती रोशनी गर्म आस |

बुझी अंगीठी पास गर्मी बुझाने की प्यास |

टूटी चारपाई धँसा बदन नैन बरसात आई |

सोये है हम दुबक अपने गर्म बिस्तर मे |

ठंढ सैनिक सीमा शहीद नाम रजिस्टर मे |

बर्फीली हवाओ वतन दुशमन घात लाई |

बिगत बरखा देखो जाड़े की रात आई |







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