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Vaishno Khatri

Inspirational

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Vaishno Khatri

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हिन्दी की आपबीती

हिन्दी की आपबीती

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हिंदी भाषा ने हिन्दी-विद्वान से, 

अपनी उन्नति हेतु की बात।  

विद्वान का सुधारवादवादी उत्तर सुन, 

उसको लगा आघात।

 

उसने कहा-अभी तो हिन्दी को, 

संस्कृत बनाने में लगा हूँ।

हिन्दी अपभ्रंश सी लगती, 

इस कमी को मिटाने में लगा हूँ।


 हिंदी के सारे शब्द निकाल कर, 

संस्कृतनिष्ठ बना दूंगा।

आम आदमी की, पहुँच से, 

बाहर हो जाए ऐसा बना दूंगा। 


बुद्धिजीवी का तर्क सुनकर, 

वह बदहवास सी हो गई।

व्याकुलता से थी चिल्लाई, 

तन-मन से जख्मी हो गई।


छोड़ कठिन शब्दों की बेड़ियां,

अबाध रूप से बहने दो।

वरना संस्कृत सा होगा हाल, 

रहम करो और रहने दो।


तुम सब के गलत प्रयासों से, 

मैं उचित स्थान न पा पाई। 

तुमने मुझे मौसी, और अंग्रेजी को, 

माँ जैसी प्रसिद्धि दिलाई।


करना है तो मेरे लिए, 

महत्वपूर्ण कार्य कर जाओ तुम।

जिन शब्दों को किया आयात, 

उनके हिंदी रूप बनाओ तुम।


इससे होगा विस्तार मेरा, 

और मैं देशव्यापी हो जाऊँगी।

उन्नति-पथ पर हो अग्रसर, 

विश्व-अग्रणी कहलाऊँगी।


तुम करना प्रयास ज़रा, 

मैं गन्तव्य तक पहुँच जाऊँगी। 

अभी हूँ राजकाज की भाषा, 

भारत की राष्ट्रभाषा बन जाऊँगी। 


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