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Vijay Kumar parashar "साखी"

Abstract

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Vijay Kumar parashar "साखी"

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हिन्द की धरती

हिन्द की धरती

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ये मेरे हिंदुस्तान की बहुत ही पावन धरती है

नापाक इरादों वालों के लिए ये आग उगलती है

इसकी माटी से प्रेम करने वालों के लिए

जंजीर से ज्यादा मजबूत इसकी बंधनी है


कुछ सात समंदर पार विदेशों में भी रहते है

पर दिल मे धड़कती उनके हिन्द की धरती है

ये मेरे हिंदुस्तान की बहुत ही पावन धरती है

जब भी हम समर भूमि में लड़ते है


इस भूमि का तिलक जरूर करते है

जब लगती है सीमा पर हमें बंदूक से गोली

हम इसकी माटी को ही बना लेते है अपनी गोली 

ये हिन्द की धरती,बहादुरों की धरती है


यंहा की माटी से ही शेरो की नस्ल निकलती है

ये मेरे हिंदुस्तान की बहुत ही पावन धरती है

जैसे आसामां के सितारे अनगिनत है

वैसे ही यंहा वीरों की गिनती,अनगिनत होती है


शीशे कटे तो भी यंहा धड़ लड़ते है

ये वीर बहादुर कल्ला की धरती है

यंहा पर क्षत्राणी शीश काटकर,

अपने पति को रण में भेजा करती है


ये मेरे हिंदुस्तान की बहुत ही पावन धरती है

अपने धर्म को बचाने,

गिद्धों से अपनी अस्मत बचाने

यंहा स्त्रियां जोहर करती है


ये धरती है वीर शिवाजी की

ये धरती है राणा प्रताप की

जिनकी वीरता के किस्से,

हमारी मां बचपन मे सुनाया करती है


ये मेरे हिंदुस्तान की बहुत पावन धरती है

मुझे अभिमान है

मेरा देश हिन्दुस्तान है

कोई क्या देखेगा इसे बुरी निग़ाह से

इसकी माटी से आग ही आग निकलती है।


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