Happy 48th, Mr Kumar
Happy 48th, Mr Kumar
पलट कर क्या देखता है वो ?
पूछा ‘ज़िंदगी जो बीत गई’ ने
‘ज़िंदगी जो हो सकती थी’ से
बोली ‘ज़िंदगी जो हो ना सकी’
मुझे देखता है चोरी - चोरी पर
कैसे होती मैं, वो भागीदार न था
थी तो मैं उसके साथ मज़बूती से
जब जीप स्कूटर से टकराई थी
१७ साल का था वो, और नादान भी
मैं थी उसके साथ असमंजस में
जब कार मुड़ गई थी ट्रक की ओर
१७ तारीख़ थी या १६ नवम्बर की नासमझी
छोड़ा उसे मैंने तब भी नहीं जब मुक्का पड़ा
शीशे की दीवार सी टूट गई थी मैं और
१७ टाँके लगे थे शायद उस नक्कारे को
यह होता तो ऐसा होता, वह होता तो वैसा
हेतु-हेतुमद भूतकाल के साये में बैठा
जी रहा है वो या फिर बीत रहा है
४८ का हुआ है आज, बीती ज़िंदगी सर पर रखे
बिना समझे कि अंतर कोई नहीं है बस
जब तक हुई नहीं, मैं हूँ, होते ही वो है
अतीत से कतराना छोड़, भविष्य के पीछे भागना
तब मेरी जान, ज़िंदगी जो हो सकती थी
वही ज़िंदगी बखूबी हो रही होती है
Happy 48th, Mr Kumar