AK 47
AK 47
जक्कनपुर की गलियाँ, काँचें-गोलियाँ
पतंग, पिट्टू और लट्टू भी
स्कूल में मैथ्स और दोस्तों का साथ
सफ़ेद से काली होती पतलून और मेरा दिल
दिल्ली की दौड़ (जो अभी भी जारी है)
और ‘बिहारी’ होने का पहला एहसास
महानगरी की माया, महामारी की साया
अपनो का प्यार और much-needed आशीर्वाद
भावनाओं की लहरों-लपेटों के बीच
‘हर्ष’ का शांत समन्दर
आज कुछ ज़्यादा ही याद आते हैं
AK को AK47 बना जाते हैं।
