क का रोना
क का रोना
क्या हो गया है अब
रेंगना नहीं, ना है दौड़ना
चलना है मुझे बस, अपनी रफ़्तार से
कब हो गया यह सब
घर में पड़े-पड़े, बिना मशक़्क़त के
तन और मन जो लड़े, पूरी मेहनत से
क्यों हो गया रे जब
रोने की आदत पड़ ही चुकी थी
जो होना है, मेरे बिना होने ही लगा था
कैसे हुआ पर करतब
अपने हाथों खुद को जलाकर
ठण्डा हो गया पर ठहरा नहीं हूँ
कहाँ जाना है और कब
सच की खोज में ‘आशु’ तत्पर
‘सत्ताईस पाँच’ के हर पग पर अग्रसर
क्या, कब, क्यों, कैसे, कहाँ
‘क’ के ये खेल सारे निराले पर
सब पर भारी, ये बीमारी - ‘क’ का रोना
