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अच्युतं केशवं

Abstract

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अच्युतं केशवं

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हैं आँखें अभ्यस्त तिमिर की

हैं आँखें अभ्यस्त तिमिर की

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हैं आँखें अभ्यस्त तिमिर की और उजाले गड़ते हैं,

उल्लू के इंगित पर तोते दोष सूर्य पर मढ़ते हैं...

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बोटी एक प्रलोभनवाली फेंक सियासत देती है,

हम कुत्तों जैसे आपस में लड़ते और झगड़ते हैं...

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यूँ तो है आजाद कलम बस पेशा करना सीख गयी,

चारण विरुदावलियों को ही कविता कहकर पढ़ते हैं...

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लेखपाल जी दस फीसद में रफा-दफा सब कर देते,

पर कानूगो बीस फीसदी लेकर कलम रगड़ते हैं...

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राशन की दुकान के मालिक मुखिया जी के साले हैं,

बी.पी.एल.वाले जीजाजी बोल सीढीयाँ चढ़ते हैं...

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डी.एल.बीमा हेलमेट परमिट हो न हो फ़िक्र किसे,

धनतेरस है निकट दरोगा गाड़ी दौड़ पकड़ते हैं...

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जिन शाखों पर फूल खिले हैं झुकी-झुकी सकुचाई हैं,

किन्तु कटीले झाड़ महल्ले भर में फिरे अकड़ते हैं...

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रामरहीमों राधे माओं की रंगीन मिजाजी से,

रंग तिरंगे के तीनों बदरंग दिखाई देते हैं...


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