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Akhtar Ali Shah

Abstract

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Akhtar Ali Shah

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है कुछ ऐसी कर्बोबला की कहानी

है कुछ ऐसी कर्बोबला की कहानी

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सलाम

***

है कुछ ऐसी कर्बोबला की कहानी,

ना मैं कह सकूँगा ना तुम सुन सकोगे। 

हुसैन इब्ने हैदर की तृष्णादहानी,

ना मैं कह सकूँगा ना तुम सुन सकोगे ।।

*

थी शब्बीर की जिंदगी लोगो निश्छल,

इबारत क्यो ज़ख्मों ने लिक्खी थी पलपल।

था क्या इम्तिहा ये के था बद पानी,

ना मैं कह सकूँगा ना तुम सुन सकोगे ।।

*

लबों पे था प्यासों के बस पानी पानी,

थी दरिया ए ग़म की रगों में रवानी ।

कहर था या थी मस्लेहत आसमानी,

ना मैं सुन सकूँगा ना तुम सुन सकोगे।। 

*

चाहते तो सेराब कर देता दरिया,

चाहते तो जीने का बन जाता जरिया। 

करी कैसे नेजे पे चढ़ हुक्मरानी,

ना मैं कह सकूँगा ना तुम सुन सकोगे।।

*

सकीना के आँसू वो असगर का रोना,

वो पीरी के काधो पे लाशों का ढोना।

थी शिम्म्रेलयी की जो शौला बयानी,

ना मैं कह सकूँगा ना तुम सुन सकोगे।।

*

ना बैयत की शैय ने ना सिर को झुकाया,

कहा हक से नाहक कभी जीत पाया ।

जो शब्बीर ने हक की की पासबानी,

ना मैं कह सकूँगा ना तुम सुन सकोगे ।। 

*

अगर हुक्में रब्बी पे सिर ना कटाते,

नवासे थे नाना को क्या मुँह दिखाते। 

"अनन्त "जो कर्बल ने की मेहरबानी,

ना मैं कह सकूँगा ना तुम सुन सकोगे।।

*

अख्तर अली शाह "अनंत"नीमच

9893788338


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