है कुछ ऐसी कर्बोबला की कहानी
है कुछ ऐसी कर्बोबला की कहानी
सलाम
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है कुछ ऐसी कर्बोबला की कहानी,
ना मैं कह सकूँगा ना तुम सुन सकोगे।
हुसैन इब्ने हैदर की तृष्णादहानी,
ना मैं कह सकूँगा ना तुम सुन सकोगे ।।
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थी शब्बीर की जिंदगी लोगो निश्छल,
इबारत क्यो ज़ख्मों ने लिक्खी थी पलपल।
था क्या इम्तिहा ये के था बद पानी,
ना मैं कह सकूँगा ना तुम सुन सकोगे ।।
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लबों पे था प्यासों के बस पानी पानी,
थी दरिया ए ग़म की रगों में रवानी ।
कहर था या थी मस्लेहत आसमानी,
ना मैं सुन सकूँगा ना तुम सुन सकोगे।।
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चाहते तो सेराब कर देता दरिया,
चाहते तो जीने का बन जाता जरिया।
करी कैसे नेजे पे चढ़ हुक्मरानी,
ना मैं कह सकूँगा ना तुम सुन सकोगे।।
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सकीना के आँसू वो असगर का रोना,
वो पीरी के काधो पे लाशों का ढोना।
थी शिम्म्रेलयी की जो शौला बयानी,
ना मैं कह सकूँगा ना तुम सुन सकोगे।।
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ना बैयत की शैय ने ना सिर को झुकाया,
कहा हक से नाहक कभी जीत पाया ।
जो शब्बीर ने हक की की पासबानी,
ना मैं कह सकूँगा ना तुम सुन सकोगे ।।
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अगर हुक्में रब्बी पे सिर ना कटाते,
नवासे थे नाना को क्या मुँह दिखाते।
"अनन्त "जो कर्बल ने की मेहरबानी,
ना मैं कह सकूँगा ना तुम सुन सकोगे।।
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अख्तर अली शाह "अनंत"नीमच
9893788338
