हाथ कलम से
हाथ कलम से


ज़िन्दगी घुमाती रही मैं चलता रहा
आँखें तपती रही मैं बर्फ लगाता रहा
लोग ताने देते रहे मैं अनसुना करता रहा
रिश्तेदार निराश करते रहे मैं आगे बढ़ता रहा
अपने मुझे ठुकराते रहे मैं सबको अपनाता रहा
उम्र भर लोग बाँधने में रहे मैं बुलंदी की
सीढ़ियां चढ़ता रहा
दुनिया रातों को सोती रही मैं खुद को
जगाता रहा
सब मुझे रोकने की कोशिश करते रहे
मैं बेफिक्र सा आगे बढ़ता रहा
लोग एक दूसरे की जान लेते रहे
मैं मुर्दों में जान फूँकता रहा
सब मतलबी बनते रहे मैं निस्वार्थ काम करता रहा
अपने उधार लेते रहे मैं रकम चुकाता रहा
ज़िन्दगी जंग सिखाती रही मैं अभ्यस्त होता रहा
हाथ कलम से लिखता रहा मैं शायर कवि बनता रहा।