हार नहीं मानूँगी
हार नहीं मानूँगी
कितनी अजीब हूँ मैं
जितनी उदार, करुण
उतनी ही सख्त, कठोर।
वक़्त के थपेड़ो ने बहुत
ज़िद्दी बना दिया है मुझे
फिर क्यों कभी पाती हूँ
स्वयं को कमजोर।
सारी दुनिया से लड़ने की
हिम्मत है मुझमें
मजबूत इच्छा शक्ति है मेरी।
स्वयं पर विश्वास है मुझे
फिर क्यों हार मान जाऊँ
इन बाधाओं से,
मैं तो नारी शक्ति हूँ
कुछ भी कर सकती हूँ
बस बहुत हो गया।
नहीं झुकूँगी
अन्याय के आगे
नहीं कर सकती
अपने आत्मसम्मान से समझौता।
लड़ूँगी मैं,
अंतिम साँस तक लड़ूँगी
हार नहीं मानूंगी ज़िंदगी से।।
