हार ही हुई है
हार ही हुई है
बहुत बार कर के देख ली है कोशिश....!
हर बार हमेशा कि
तरह हार ही हुई है....!!
दफ़न हो गई है तमन्नाएं
सारी मन के भीतर ही....!
ओर कितनी मन्नतें मानूँ
एक भी कहा साकार हुई है....!!
जब भी चाहा किसी
चीज को शिद्दत से....!
सारी कायनात हमेशा की
तरह दूर करने में ही लग गई है....!!
पुराने ख्वाब ज़हन में
भला आयेंगे भी कैसे....!
नींद जो हमारी
अब नयी हुई है....!!
सोच के बारे में ओर कितना सोचूं,
सोचती हूँ सोचना ही छोड़ दूँ....!
सोच हमेशा सभी कार्यों
के विपरीत ही हुई है....!!