मंजरी
मंजरी
एक मंजरी
गिरी नैन-वृंदा से
कपोल पर।
कोपलें सभी
फूट पड़ीं भावों की
हृदय भू से।
मेघ आवृत
जो घेरे था मन को
किसी शून्य सा।
बरस पड़ा
तोड़ समस्त बाँध
तीव्र वेग से।
धुंध भी छंटी
इंद्रधनुष खिला
नई आस का।
एक मंजरी
गिरी नैन-वृंदा से
कपोल पर।
कोपलें सभी
फूट पड़ीं भावों की
हृदय भू से।
मेघ आवृत
जो घेरे था मन को
किसी शून्य सा।
बरस पड़ा
तोड़ समस्त बाँध
तीव्र वेग से।
धुंध भी छंटी
इंद्रधनुष खिला
नई आस का।