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ARVIND MAURYA

Drama

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ARVIND MAURYA

Drama

हाँ मैं एक कुत्ता हूँ

हाँ मैं एक कुत्ता हूँ

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हाँ मैं एक कुत्ता हूँ,

बे बात के भौं -भौं करता हूँ ,

सब से दुत्कारा जाता हूँ,

बे बात के मारा जाता हूँ ,

मेरे भौ-भौ का मोल वही,

चाहे मैं गलत हूँ या हूँ सही।


मेरे भौं-भौं के कारण को,

इंसान समझ नहीं पाता है।

मेरे भौं-भौं की बातों पर,

उल्टा मुझको गरियाता है।

जो बात समझ से परे तेरे,

आस्तित्व नहीं क्या उसका है?

ये सारी धरती क्या तेरे ,

अम्मा, अम्मी ,दद्दा का है?

चल मान लिया कि समझ तेरी,

अब भी थोड़ी सी कच्ची है

पर बात हरेक समझने को,

बस समझ तेरी नाकाफी है।


तू तो ठहरा इंसान बड़ा,

मैं समझ को तेरी दोष न दूँ ।

मैं तो ठहरा पिद्दी कुत्ता,

मेरा सामर्थ्य कहां इतना।

तेरे ही घर की ड्योढ़ी से,

मैं समझ को तेरी तोल सकूँ ।


मैं तो ठहरा अदना कुत्ता,

तू बन बैठा मालिक मेरा।

तुम मार भी दो, दुत्कार भी दो,

मैं कहीं नहीं हिलने वाला।

तेरे टुकड़े की रोटी पर,

मैं ही तो हूँ पलने वाला ।


तू तो ठहरा इंसान बड़ा,

ये सारी धरा तेरी समिधा।

तू जो चाहे उपभोग करे,

तू जो चाहे विध्वंस करे ।

तूने है छोड़ा कहीं नहीं,

एक भाग शेष इस वसुधा का।

जल थल नभ को है बींध दिया,

शर् बर्बरीक सम पीपल का ।


इस अधुनिक तकनीकी ने,

मेरी भी रोजी खाई है,

अब कोई क्यों पाले कुत्ता,

जब सबके घर में लाइट है।

और साथ में ऊपर ऊपर से,

फिरती रहती सेटलाइट है।


अब तू ही बता मैं जाऊ कहाँ,

अपने दुखड़े मैं गाऊं कहाँ।

है कौन मेरी सुनने वाला,है

कोई कहाँ मिलने वाला।


इस पूंजीवादी युग में उन

झबरे कुत्तो की चांदी है,

जिनकी आबादी हम सब के,

एक प्रतिशत की भी आधी है ।


जो कुत्ता कुत्ता रटते हैं,

झबरे की बात ही करते हैं।

हम सबकी इतनी पूछ कहा,

हम तो सड़को पर मरते हैं

मरने के बाद भी चैन कहाँ,

हम पड़े पड़े वहीं सड़ते है ।


दुर्गंध मेरी जब उड़ती है,

नाकों के बाल जलाती है।

तब गरियाता इंसान कहे-

देखो साला कुत्ता आया था ,

बीच सड़क पर मरने को।

पर दोष ही इसमें किसका था,

ये बतलाना भाई मुझको।


इंसान भी ठहरा एक कुत्ता

एक है झबरा, एक है उजड़ा,

एक है मोटा, एक है दुबला,

एक है सुथरा, एक है गंदला।



ऐसे करते तुम जाओगे,

इंसान को कुत्ता पाओगे।

एक है झबरा, एक है उजड़ा।

एक है सुथरा, एक है गंदला।


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