हाल-ए-दिल
हाल-ए-दिल
ना मैं कोई शायर हूँ, ना शायरी का शौक है,
ये तो बस एक जरिया जहां हाल-ए-दिल बयां है।
बेकरार दिल जिनके लिए, उनको सुनने की दिलचस्पी नहीं
शायरी बनके बेजुबान आशिक तभी तो खुले आम है।
आँखों पे आंसू होंठ पे मुस्कान, अजीब सा किरदार है,
हाल इसका इल्म नहीं, मामला ये दिल का है।
हर तरफ है बेखुदी, हर तरफ अकेलापन,
खुद से खुद जुदा है हम, बस रब से ही उम्मीद है।
मोहब्बत तो है राहे इलाही, खुदा ही जाने बेहतर,
रब के इश्क-ए-समुंदर में हम तो बस एक बूंद है