गुरु
गुरु
अनजानी सड़क थी, बेगानी भड़क थी,
सूनसान राहें थी, तूफानों की लहर थी,
मुसीबतों का पहाड़ था जो बड़ा अनजान था,
अकेले इस जहां में बस मेरे गुरुजी का साथ था।
पानी की धारा जैसे बहती है शिखर से,
मखमली छाया जैसे गिरती है पेड़ से,
फिसलती रेत से जैसे हवा करती है बात,
वैसे ही मेरे सिर पर गुरुजी बनाए रखना अपना हाथ।
बारिश की बूंदें जैसे चमकता मोती,
तपस्या करता जैसे बरसों से कोई जोगी,
सफलता जो मिले वर्षों के बाद,
ऐसा अनोखा होता है गुरु-शिष्य का साथ।
- Dhwani Mange