कुदरत
कुदरत
आसमानों मैं धुआँँ बनकर ये बादलों का आना,
बिना तार के न जाने कैसे चमकता है सितारा ,
रंग-बिरंगी फूूलों का नजाने ये कैसा है नज़राना,
ऐ कुदरत ,ये तेेरा केसा है नज़ारा ।
हज़ारों रंगों का मेल है ये कुदरत का खजाना,
जब भी देखू तो बन जाऊ इस प्रकृति का दीवाना,
हवा और पर्वत का ये आपस मे टकराना,
ऐ कुदरत, ये तेरा कैसा है नज़ारा।
वो गिली मिट्टी की खुुुशबू से मन का प्रफुलित हो जाना
फिर बरसते हुए मेघों का फेेलता हुआ उजाला ,
उन परिंदों का आकाश मे खुद को मटकाना,
ऐ कुदरत, ये तेरा कैसा है नज़राना।
ये पानी का बेहना , ये चिड़िया का चहकने,
वो शिखरों का चमकना, वो रेत का सरकना,
ऐ कुदरत ये तेेरा कैसा है चमत्कार?
ये और कुुुछ नहीं ये तो है उस रब का अविशकार।