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Dhwani mange

Abstract

4.6  

Dhwani mange

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कुदरत

कुदरत

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आसमानों मैं धुआँँ बनकर ये बादलों का आना,

बिना तार के न जाने कैसे चमकता है सितारा ,

रंग-बिरंगी फूूलों का नजाने ये कैसा है नज़राना,

ऐ कुदरत ,ये तेेरा केसा है नज़ारा ।


हज़ारों रंगों का मेल है ये कुदरत का खजाना,

जब भी देखू तो बन जाऊ इस प्रकृति का दीवाना,

हवा और पर्वत का ये आपस मे टकराना,

ऐ कुदरत, ये तेरा कैसा है नज़ारा।

 

वो गिली मिट्टी की खुुुशबू से मन का प्रफुलित हो जाना

फिर बरसते हुए मेघों का फेेलता हुआ उजाला ,

उन परिंदों का आकाश मे खुद को मटकाना, 

ऐ कुदरत, ये तेरा कैसा है नज़राना।


ये पानी का बेहना , ये चिड़िया का चहकने,

वो शिखरों का चमकना, वो रेत का सरकना,

ऐ कुदरत ये तेेरा कैसा है चमत्कार?

ये और कुुुछ नहीं ये तो है उस रब का अविशकार।


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