गुरु वन्दन
गुरु वन्दन
संसार के सब दर्शन महान,
तेरे मार्ग दर्शन ने ही सुझाये हैं।
क्या वैज्ञानिक क्या डॉक्टर इंजीनियर,
ये सब प्रभु तेरे ही तो जाये है।।
तुम पत्थर को मुखरित कर दो,
जड़ में फूंक देते हो प्राण
निःस्वार्थ भाव से सेवा देते,
ऐसे हैं प्रभु सम गुरुदेव महान।।
प्रभु भी जिन के आगे झुक कर,
सौ सौ बार निज शीश झुकाते।
तुम ही हो पुण्य आत्मा धरा पर,
प्रभु मिलन की जो राह सुझाते।।
बहुत दानी इतिहास बताते,
पर तुम से बड़ा न कोई दानी होगा।
एक सेर हो भले झोली में अपनी,
देते सवा सेर कौन तुम्हारा सानी होगा।।
बस एक अभिलाषा मन में पलती,
शिष्य मुझसे दो कदम आगे निकले।
ऐसी त्याग मूर्ति और भला कौन होगी,
जो निज सृजन से इतिहास नया लिखदे।।
तुम्हारा प्रभु मैं शब्दो से चित्रण कर दूँ,
न होगा इतना सामर्थ्यवान मेरा कोष कभी।
बस अबोध मन के भावों को स्वीकार करना,
देव को न होने देना घमण्ड में मदहोश कभी।।
