STORYMIRROR

Supriya Singh

Inspirational

3  

Supriya Singh

Inspirational

गुरु महिमा

गुरु महिमा

1 min
177

गुरु महिमा अनगिनत हैं, वर्णन नहीं हो पाय,

गुरु समक्ष स्वयं ईश्वर भी, नमत लघु हो जाये।

ज्यों कुम्हार कच्ची माटी, गढ़ नव मूर्ति बनाये,

कुशल शिल्पी बन परख गुण, शिष्य गढ़े दिनराय,

ज्यों माली सींच नित पौधा, कर देखभाल बढ़ाये।

पथ प्रदर्शक बन आगे चल, उत्तम राह दिखाये,

काँटे चुन-चुन राह के, मंजिल सुलभ बनाये।

राह दिखाये बन सारथी, लक्ष्य हासिल करवाये,

पुष्प चुन-चुन बीच कंटक से, उत्तम हार बनाये।

शुद्ध-विशुद्ध, पाप-पुण्य बताये, आत्मा शुद्ध करवाये।

ऐसे गुरु महान जग माही, अति दस्तूर मिल पाये,

भवसागर जो पार कराये, जीवन सफल बनाये।

सादर वन्दन अभिनंदन कर, सब जग शीश नवाये,

विनती एक ही मन सबही के, आशीष सदा सब पाये....



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational