गुम हुई हँसी
गुम हुई हँसी
वीरान होती बस्ती दर बस्ती
हो गई जीवन कितनी सस्ती
बंद दरवाजे मेें है कैद जिंदगी
साँँस चल रही फंसी फंंसी
गुम सी हुई हर लब की हँसी।।
धरी रह गई वक्त की मस्ती
चुप खङी रह गई बङी सी हस्ती
सब खत्म होने को है जल्दी
सहेेज रखी हमने जो विभूूूति
गुम सी हुई हर लब की हँँसी।।
सहम सहम कर कमर कसी
दवा दर्द की कहाँ बँधी रही
तोङ न पाए मौत की कङी
बस भ्रम की लङी है सजी
गुम सी हुई हर लब की हँँसी।।
सजग हो मानव मेरे भाई
है एक यह गजब की लङाई
भाल रक्त से होने को है लाल
संभल संभाल यह कोरोना काल
सब है हाथ तेरे रची बसी
गुम सी हुई हर लब की हँँसी।।
प्रहाणि की बिगुल है बजी
सहमा रह बचा साथी संगी
न अकङ झुक ले बस थोडा
होगा दूूर राह का हर रोङा
अनंंत की यात्रा ले जाएगी गाफ़िली
चेत,गुम सी हुई हर लब की हँसी।।
