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Sudhir Srivastava

Tragedy

4  

Sudhir Srivastava

Tragedy

गर्मी

गर्मी

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चिलचिलाती, चिपचिपाती गर्मी का

रौब हर साल बढ़ रहा है,

आमजन का जीवन मुश्किल हो रहा है,

क्या कहोगे दोस्तों

सितम ये क्यों बढ़ रहा है?

आधुनिकता का आवरण 

ओढ़ जो लिया हमने

कंक्रीट के जंगलों को

जीवन मान लिया हमने,

बड़ी बेहयाई से पेड़ काट रहे हैं

धरती की हरियाली पर कुठाराघात कर रहे हैं,

धरती का दामन बड़ी बेशर्मी से

खोखला करते जा रहे हैं।

यह कैसी विडम्बना है कि

अपनी औलादों के लिए

घुट घुटकर जीने ही नहीं

मरने का इंतजाम भी हम खुद ही कर रहे हैं।

वाहनों की रेलमपेल हम ही बढ़ा रहे हैं

जीवन जीवन की तरह नहीं जी रहे

जैसे आँख मिचौली कर रहे हैं।

कितना अजीब है कि हम

गर्मी से बेहाल हो गर्मी को कोस रहे हैं

लगे हाथ आधुनिकता और अपनी सुविधा के लिए

धरा की वास्तविक व्यवस्था को छेड़ भी रहे हैं,

अनगिनत बीमारियों का कारण बन रहे हैं

पानी की किल्लत से युद्ध कर रहे हैं।

अब तो लीला देखिए हमारे अपने कर्मों की

गर्मी से भी अब लोग मर रहे हैं।

भीषण गर्मी से मार्ग दुर्घटनाओं में भी

बाढ़ सी दिखने लगी है,

अग्निकांड की तपिश जलाने लगी है,

कुँए, ताल, पोखर इतिहास हो रहे हैं

नदियाँ भी आँसू बहाने लगी है।

बेमौसम बरसात की बात क्या करें

प्राकृतिक असंतुलन, बाढ़, सूखा, भूस्खलन

आम बात हो ही हो गई है,

धरती और बादल फटने की घटनाएं भी

अब चौंकाती नहीं हैं।

दोष किसका है ये तो हमें सोचना होगा,

गर्मी को कोसने भर से कुछ नहीं होगा,

गर्मी कब तक कितना धैर्य रख सकती है?

इसका भी चिंतन, मनन करना होगा

जीना है हमें यदि तो इंसान बनना होगा

जल, जंगल, जमीन की इज्जत ही नहीं

संरक्षण भी करना होगा,

औरों को दोष देने भर से कुछ नहीं होगा,

गर्मी का ताप कम हो 

हम सबको ही काम ऐसा करना होगा

वरना गर्मी के ताप से झुलसना ही नहीं

बेमौत मरना ही होगा।

क्योंकि ये सारा इंतजाम हमारा है

तो इसका प्रतिफल भी तो हमें ही भोगना होगा

गर्मी, गर्मी चिल्लाने से भला क्या होगा?



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