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Jyoti Naresh Bhavnani

Abstract

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Jyoti Naresh Bhavnani

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ग़रीबी जैसा नहीं कोई अभिशाप

ग़रीबी जैसा नहीं कोई अभिशाप

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ग़रीबी है जैसे एक श्राप,

उसके जैसा नहीं कोई अभिशाप।


ग़रीबों का होता नहीं है कोई माई बाप।

भूख से बिलखते वे दिन और रात।


ग़रीबों की हालत गरीब ही जाने,

और कोई ना उनको कभी पहचाने।


ग़रीबों के लिए कोई त्यौहार न होता,

उनके जैसा बदहाल किसी का न होता।


ग़रीबों का नसीब फूटा है होता,

उनके जैसा बदनसीब कोई और न होता।


न सिर पे कोई छत न कोई सहारा है होता,

ग़रीब हरकोई बेसहारा है होता।


उन के जैसा बुरा हाल किसी का न होता,

गर्मी सर्दी में ग़रीब ख़ूब परेशान है होता।


नीचे ज़मीं और ऊपर आसमां है होता,

किस्मत का मारा गरीब कहीं भी रह लेता।


न तन पे कोई ढंग का कपड़ा है होता,

न ही पांव में उनके कभी जूता है होता।


हर तमन्ना और आरज़ू से वह लाचार है होता,

किसी भी खुशी पर उसका अधिकार न होता।


अपनी सारी ज़िंदगी वह अभावों में है जीता,

फिर भी किसी से शिकायत वह कभी नहीं है करता।


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