ग़म - ए - दर्द
ग़म - ए - दर्द
ग़म - ए - दर्द की यह बात,
जुबां से हम बयां किससे करें।
लाखों अजनबी है यहां मगर,
अपना समझ कर मुलाकात किससे करें।
फितरत नहीं मेरी की हर बार,
सुनाउं उसे मैं हाल-ए-दिल ।
वो सुनते ही नहीं मेरी कोई बात,
तो हम फरियाद किससे करें।