कभी कभी
कभी कभी
कभी-कभी अकेले में, मैं खुद से बातें करती हूँ।
हे रंग कई इस प्रेम के, यह खुद से साझा करती हूँ।
करती हूँ जब जिक्र तेरा, तब थोड़ी सी चहकती हूँ।
तेरी आंखों की यह किरकिरी देखकर, बेवजह
बहकती हूँ।
कभी कभी अकेले में, मैं खुद से बातें करती हूँ।
हो सुबह या शाम कोई, मैं खुद से पूछा करती हूँ।
दिल की बात बताने में, मैं जाने किस से डरती हूँ।
कभी कभी अकेले में, मैं खुद से बातें करती हूँ।
सुनती हूं जब नाम तेरा, तब फूलों सी महकती हूँ।
देखें अगर कोई और तुझे, तो आग सी मैं दहकती हूँ।
कभी कभी अकेले में, मैं खुद से बातें करती हूँ ।
मिलती नहीं जब तुझ मैं, तब ठंडी आहें भरती हूँ।
लो आज तुम्हारे सामने ही, इज़हार -ए- मोहब्बत
करती हूँ ।
कभी कभी अकेले में, मैं खुद से बातें करती हूँ।
है रंग कई इस प्रेम के, यह खुद से साझा करती हूँ
