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Ayush Kaushik

Abstract

4.0  

Ayush Kaushik

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गलतफहमी

गलतफहमी

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कई बार बातें उलझ जाती है, बेवजह रातें यूँ ही बीत जाती हैं।

हैरानी होती है जब भरोसा अटूट अपना कैसे छोटी सी बातों में टूट जाता है।

हर घड़ी कुछ न कुछ मन ये सोचता रहता है, बेवजह ही हैरान होता रहता है।

ज्यादा सोचना भी एक रोग है, जो भी इसके चक्कर मे फसता हंसते उसपे लोग हैं।

समय बहुत खराब किया मैंने ऐसे, जहाँ कुछ नही था वहाँ ढूँढ रहा था में बहुत कुछ।

काश रुक के दो पल मैंने उसको समझा होता, उसकी बातों को सुना होता।

उसने कभी उफ न कि और मेरी गलतफहमी को चुप चाप सहती रही।

मैं रोज़ उसको परेशान करता, कभी तंज कसता कभी उसको दुखी करता।

कैसे में इतना गिर गया और अपने सपने को खुद ही तोड़ता रहा।

फिर भी उसने हार न मानी और कोशिश वो करती रही, की दूर हो जाये गलतफहमी मेरी।

अब ये बात मेरे समझ आयी कि बार बार गलतफहमी पालना कितना खराब होता है। 

और अगर जीते जी मरना हो तो यही सबसे आसान तरीका होता है।



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